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महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार - Educational Thoughts, Quotes by Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार भारतीय शिक्षा और समाज के विकास के प्रति उनकी महत्वपूर्ण सोच का परिचायक हैं। उन्होंने शिक्षा को एक ऐसे उपकरण के रूप में देखा जिससे समाज को सुधारा और स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन प्रदान किया। यहां कुछ महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार हैं:

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महात्मा गांधी के शैक्षिक विचार - Educational Thoughts, Quotes by Mahatma Gandhi

शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ जीवन की कमजोरी को दूर करना नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उद्देश्य जीवन को बेहतर बनाना चाहिए।

नई दुनिया के निर्माण के लिए शिक्षा भी नए प्रकार की होनी चाहिए।

विद्यार्थियों के आचरण को सर्वाधिक प्रभावित अध्यापक का आचरण करता है।

शिक्षा का महत्व उसमें निहित होता है जिसे विचार करने में आनंद आता है, और विचार करने में आता है जिससे जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

शिक्षा केवल पुस्तकों की जानकारी नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह आत्मा के संवाद से भी संभव है।

जब तक विनम्रता और सीखने की इच्छा न हो तब तक कोई ज्ञान अर्जित नहीं किया जा सकता।

शिक्षा का माध्यम बनाकर ही समाज में सुधार किया जा सकता है।

चरित्र के बिना ज्ञान केवल बुराई को शक्ति देता है।

शिक्षा व्यक्ति को सद्गुणों का समर्थन करने का और समाज के लिए उपयोगी बनाने का माध्यम होनी चाहिए।

Mahatma Gandhi Jayanti Quotes in Hindi

अपने प्रयोजन में दृढ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर भी इतिहास के रुख को बदल सकता है।

शिक्षा के माध्यम से ही हम समाज में समाजिक और आर्थिक सुधार कर सकते हैं।

चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए।

समाज के लिए काम करना और उसका सेवा करना शिक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।

जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता।

शिक्षा के माध्यम से हमें आदर्श और नैतिकता की महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है, जिससे हम सही और गलत की पहचान कर सकते हैं।

अपने ज्ञान के प्रति ज़रुरत से अधिक यकीन करना मूर्खता है। यह याद दिलाना ठीक होगा कि सबसे मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान गलती कर सकता है।

शिक्षा से हमें समाज में समाजिक जागरूकता का कार्य करने का और उसमें सुधार करने की क्षमता प्राप्त होती है।

यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।

शिक्षा का महत्व उसमें निहित होता है जिससे विचारशीलता की बढ़ोतरी होती है और उसे आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं।

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य समाज में समाजिक और आर्थिक समानता की बढ़ोतरी करना होना चाहिए।

शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बालक के शरीर का विकास हो क्योंकि उनके अनुसार स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है

शिक्षा का उद्देश्य जीवन को अधिक सरल और सुखमय बनाना चाहिए।

शिक्षा के माध्यम से बालक में सत्य,अहिंसा,ब्रमचर्य, अस्वाद, अपरिग्रह ओर निर्भरता आदि गुणों का विकास होना चाहिए।

शिक्षा के माध्यम से हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण कौशल प्राप्त होते हैं।

शिक्षक मुख्य होता है यह शिक्षा को समाज का आदर्श , ज्ञान का पुन्य और सत्य आचरण करने वाला होना चाहिये।

शिक्षा के माध्यम से हम जीवन के सभी पहलुओं को समझने की क्षमता प्राप्त करते हैं और अपनी ज़िन्दगी को एक बेहतर दिशा में दिखाने का कौशल सीखते हैं।

विद्यार्थी को अनुशासित रहना चाहिए , अनुशासन तथा ब्रमचर्य का पालन करना चाहिए

शिक्षा से हमें जीवन का सबसे महत्वपूर्ण धर्म है कि हम दूसरों की सेवा करें।

विद्यालय ऐसे होने चाहिए जहाँ शिक्षक सेवा भाव से पूर्ण निष्ठा के साथ , शिक्षण करें।

शिक्षा का माध्यम बनाकर ही हम समाज में बदलाव और सुधार कर सकते हैं, और यही हमारी जिम्मेदारी है।

विदेशी भाषा के माध्यम से सही शिक्षा संभव नहीं है।

शिक्षा से हमें अपने आत्मविश्वास की बढ़ोतरी होती है और हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं।

शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य मे निहित शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक श्रेष्ठतम शक्तियों का अधिकतम विकास है।

शिक्षा के माध्यम से हमें अपनी आत्मा की गहराईयों को समझने का और अपने मूल लक्ष्यों की प्राप्ति का माध्यम प्राप्त होता है।

साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है न प्रारम्भ। यह मात्र एक साधन है, जिसके द्वारा स्त्री एवं पुरूष को शिक्षित किया जा सकता है।

शिक्षा के माध्यम से हमें अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी और सामाजिक न्याय की महत्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त होती है।

शिक्षा स्वावलंबी हो- यानि खर्च का वहन अध्यापकों एवं छात्रों द्वारा किए गए उत्पादन कार्यों से किया जाए।

शिक्षा का महत्व यह है कि यह हमें अपने जीवन का उद्देश्य और मार्ग समझने का कौशल सिखाती है, जिससे हम अपने जीवन को एक सफल और उपयोगी दिशा में ले सकते हैं।

तुम्हारी शिक्षा सर्वथा बेकार है, यदि उसका निर्माण सत्य और पवित्रता की नींव पर नहीं हुआ है।

महात्मा गांधी के शिक्षासिद्धांत विचारों में आत्मनिर्माण, समाज सेवा, सद्गुण, और सामाजिक न्याय की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। उनके शिक्षासिद्धांतों का पालन करके हम समाज में सुधार करने के लिए उत्साहित हो सकते हैं और एक बेहतर और उद्देश्यपूर्ण जीवन की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

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